तभी सार्थक है बाल दिवस

हर बच्चे को मिले उसके हिस्से का प्यार,

हर बच्चे को मिले साफ-सुथरा परिवार।

रोजी-रोटी, शिक्षा अथवा व्यापार,

हर तरह सुखी हो इनका संसार।

एक भी बच्चा न रहे विवश,

तभी सार्थक है बाल दिवस।।


सफलता के श्रेष्ठ साधन,

उपलब्ध हों क्षण-क्षण।

न दुःख-दैन्य हो जीवन में,

मुस्काता रहे बचपन।

मन में उपजे प्रेम-प्रीति का रस,

तभी सार्थक है बाल दिवस।।


धैर्यशील हों, चुनें उन्नत राह,

हर समय जागे निर्माण की चाह।

न हो मन में दुःख-दर्द, दाह,

ज्ञान की ललक भरी हो अथाह।

दुनिया में फैले इनका यश,

तभी सार्थक है बाल दिवस।।


अपने कर्तव्य को जानें ये बच्चे,

स्वयं की क्षमता पहचानें ये बच्चे।

राष्ट्र को ही देवता मानें ये बच्चे,

आगे बढ़ने की ठान-ठानें ये बच्चे।

कर्म का धनुष, धर्म का तरकस,

तभी सार्थक है बाल दिवस।।


रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।


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