रामोत्सव

 धर्म भवन का धर्म शिला पर,

नव उत्थान है होने वाला।

धर्म भूमि का उत्सव फिर से,

धर्म बीज है बोने वाला।।


प्राण प्रतिष्ठा राम लला की,

सुनो अवध में होने को है। 

हर्षित मन जनमानस का,

गर्वित याद संजोने को है।।


संघर्ष दशक का जीता है,

अर्द्धांगिनी जिनकी सीता है।

पाषाण नार के उद्धारक,

वो वनवासी सबके तारक।।


शबरी के जूठे फल खाए,

थे पुरुषोत्तम जो कहलाए।

शिव जी जिनके प्रेम की खातिर,

मारूति बनकर थे आये।।


वो रामलला फिर आने वाले,

सकल लोक चलाने वाले।

शक्तिपुंज वो ज्योतिपुंज,

खल-दुष्ट दमन करने वाले।।


रचयिता

ज्योति विश्वकर्मा,

सहायक अध्यापिका,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,

विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,

जनपद-बाँदा।

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