04/2024- बाल कहानी, 19 जनवरी 2024

क्या करुँ?
"हाँ, गुरु! हैं हम। जानते हो, किसे कहते हैं गुरु? अन्धकार को दूर करने वाला, आदर्श दिखाने वाला। आपका यह व्यवहार सहन करने योग्य नहीं। कर्तव्य के प्रति समर्पण, शिक्षक का स्वभाव होना चाहिए।" कहते हुए गरिमामयी व्यक्तित्व के धनी प्रधानाध्यापक श्री लाल सिंह लटवाल अपने साथी अध्यापक श्री प्रशान्त किशोर त्यागी पर बिफर पड़े। त्यागी जी मैदानी क्षेत्र से ताल्लुक रखते थे। वह दो वर्ष पूर्व लटवाल जी के विद्यालय में प्रथम नियुक्ति पाकर पद स्थापित हुए थे। वे अक्सर अवकाश पर घर जाने, जाकर घर पर बने रहने के बहाने ढूँढा करते। पाठशाला में शिक्षण के दौरान अक्सर फोन से चिपके मिलते व अनमने ढंग से बच्चों को पढ़ाया करते। बच्चे उनका शिक्षण ठीक से आत्मसात न कर पाते थे। पहाड़ पर की जा रही सेवा उन्हें दण्ड स्वरूप सी लगती, जिसे वह गाहे-बगाहे बोल दिया करते थे। पानी सर से ऊपर चढ़ जाने पर आज प्रधानाध्यापक को यह कहना ही पड़ा। 
प्रधानाध्यापक की लताड़ से आहत हो त्यागी जी अपने उच्च सम्पर्क सूत्रों से तिकड़म भिड़ा मैदानी क्षेत्र से लगे विद्यालय में स्थानान्तरित होकर चले गये और उनकी जगह दुर्गम से आयी एक शिक्षिका ने शीघ्र ही भर ली। शिक्षिका लटवाल जी के आदर्शों के अनुकूल निकलीं। शीघ्र ही विद्यालय का शैक्षिक व भौतिक वातावरण काफी आगे निकल गया। लोग उनके समर्पण भाव व शिक्षण के कायल हो गये। दोनों ही शिक्षक शिक्षण के साथ- साथ हर सामाजिक मंच से  व्यक्तिगत व सामूहिक रूप में सरकारी शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते हुए नि:शुल्क रूप में मिलने वाली सुविधाओं से लोगों को अवगत कराते रहते और सरकारी स्कूलों में उनके नौनिहालों का प्रवेश कराने हेतु प्रयासरत रहते। कुछ वर्षों बाद लटवाल जी सेवानिवृत्त हो गये, मगर शिक्षिका उनके पदचिह्नों पर चलती रहीं। 
लटवाल जी का एकमात्र पुत्र पहले ही फौज में भर्ती हो चुका था, जिसका अब विवाह कर दिया गया। उससे बड़ी दो पुत्रियाँ पहले ही ब्याही जा चुकी थीं, जो अब अपने परिवार के साथ हल्द्वानी में मकान बनाकर रह रही थीं। पुत्र विवाह के साल भर में ही उन्हें पोते का सुख प्राप्त हो गया, पर बहू-बेटा अब हल्द्वानी जाने की जिद करने लगे। समस्त आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित सड़क किनारे बना हुआ घर उन्हें रास नहीं आने लगा। लटवाल जी चाहते, पोता व बहू यहीं घर पर ही रहें। पोता नजदीकी सरकारी स्कूल में पढ़े। बढता विवाद इस शर्त पर शान्त हुआ कि पोता पच्चीस किमी दूर प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया जायेगा और उसकी पढ़ाई का सारा खर्च दादा द्वारा उठाया जाएगा। हालातों ने लाल सिंह को मजबूर कर दिया। क्या करूँ? कहते हुए उन्होंने एक ठण्डी आह भरी और कुदाल पकड़ अदरक लगाने खेतों की ओर चल दिये।

संस्कार सन्देश-
हमें अपने कर्तव्यों के प्रति सजग और ईमानदार होना चाहिए, तभी हम दूसरों को सही राह दे पायेंगे।

✍️🧑‍🏫लेखक-
दीवान सिंह कठायत (प्र०अ०)
रा० आ० प्रा० वि० उडियारी
बेरीनाग (पिथौरागढ़)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद (नैतिक प्रभात)

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