मैं इंसान हूँ

मैं इंसान हूँ।

मैं इंसान हूँ मुझे चोट लगती है।

मैं इंसान हूँ इसीलिए बार

बार सँभल जाती हूँ। 

क्योंकि अगर पत्थर होती तो कब की टूट कर बिखर गई होती।

मत आशा करो मुझसे देवत्व की

मत सोचो कि न होगी मुझसे भूल

मत समझो कि मैं सह जाऊँगी सब कुछ बस निष्क्रिय होकर।

क्योंकि पत्थर और इंसान में यही तो अंतर है

पत्थर पर होता नहीं है असर किसी बात का

और इंसान पर ज़रा सी बात का असर हो जाता है।

मैं चाहती हूँ बस इंसान ही होना

यूँ ही सुख दुःख में हँसना, रोना

नहीं चाहती ऐसा चिंतन

कि निष्क्रिय हो जाए मन

असर न हो जिस पर किसी भी बात का......

क्योंकि अगर इंसान देवता हो जाएगा

तो फिर देवता कहाँ जाएगा?


रचयिता 
रचना गुप्ता,
सहायक अध्यापिका,
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय मुकर्रबपुर,
विकास खण्ड-रुड़की, 
जनपद-हरिद्वार,
उत्तराखण्ड।



Comments

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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