विजयादशमी

यह आदर्शों का पर्व दशहरा,

संदेश छिपा है गहरा।

सत्य न्याय के आगे, छल छद्म नहीं है ठहरा?


जब अहंकार मतवाला, कुछ भी नहीं समझता।

निर्बल पर करता प्रहार और अट्हास है करता।

तब गर्व हनन करने, आते प्रभु  राम हमारे।

जय होती फिर न्याय नीति की, कटते बंधन सारे।

असुरत्व मिटाने मन्यु जगाना, जिसका रंग सुनहरा।

जन मन में नव जागृति आए, कहता पर्व दशहरा।


आज भी सीता छली है  जाती, स्थिति यही बताती।

क्रन्दन पीड़ा चीत्कार है, सिसकी कहीं सुनाती।

अब असुरत्व प्रबल है, कितने हैं अंधियारे?

अंधकार से मुक्ति दिलाने, अब आओ राम हमारे।


अनगिन दीप जला दें आओ, तमस मिटाने गहरा।

मिटते आदर्शों की याद दिलाने, आया पर्व दशहरा।


रचयिता
सतीश चन्द्र "सौमित्र"
प्रभारी अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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