बन्दा बहादुर

1670 अक्टूबर तारीख सत्ताईस,

जून में बंदा बहादुर की,

देश का नाम करने की ख्वाहिश।

जम्मू के पुंछ जिले में जगह तत्छल,

शूरवीर सा जीवन था मन उनका निश्छल।


भारी सिक्ख सेना लेकर,

सरहिंद की ओर निकले।

नवाब वजीर मारा गया,

योद्धा ऐसे थे ये विरले।


1715 में मुगल की 30000 सिपाही,

पड़ने लगे अब बंदा बहादुर पर भारी।

जोर जुल्म यातना सहते रहे,

फिर भी 8 महीने तक

ये बहादुरी से लड़ते रहे।


पकड़कर उनके सामने ही,

बेटे को मार डाला।

जल्लाद ने बेटे का कलेजा,

उनके मुँह में डाला।


आँखें फोड़ दी गई बंदा की,

पूछा इस्लाम कबूल करोगे या नहीं।

निर्भीक बंदा ने मौत को गले लगाया,

बलिदान जान का देकर उसने

धर्म और कौम की रक्षा का वचन निभाया।


रचयिता
सुधांशु श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मणिपुर,
विकास खण्ड-ऐरायां, 
जनपद-फ़तेहपुर।

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