सरकारी स्कूल में होना ही मेरी आज़ादी है

मेरी जिंदगी मेरी जुबानी-एक बच्चे की कहानी,"


हूँ  मैं सरकरी स्कूल का बच्चा, पर मैं आज़ाद हूँ

इस गरीबी भरी ज़िन्दगी में, कहता हूँ कि मैं आज़ाद हूँ।


नहीं हैं मेरे पिता के पैरों में भारी फीस की बेड़ियाँ,

मैं अपने पिता की गरीबी की  मजबूरियों से आज़ाद हूँ।


हाँ नहीं हैं मेरी माँ के पास अच्छे लंच देने का पैसा

 पर मैं ताजा ताजा मिड डे मील खाकर ही आज़ाद हूँ।


 नहीं है मेरे  पास महँगी-महँगीयूनिफार्म...

पर  निःशुल्क  यूनिफॉर्म पहनकर मैं आज़ाद हूँ।


हाँ  नही हैं मेरे पास महँगी-महँगी किताबें,

पर मैं इसे खरीदने की  चिंता से आज़ाद हूँ।


हूँ मैं माटी में लिपटा भरा, पर माटी की सुगंध महसूस कर,

मैं अपनी भारत माता के लिए आज़ाद हूँ।


हाँ, हैं  मेरे खिलोने  कन्चे, गुट्टी, गुडिया, गाड़ी,

लेकिन मैं अपने खिलौने  स्वयं चुनने में आज़ाद हूँ।


हाँ, नहीं हैं मेरे पास किताबों से भरा बस्ता,

पर मैं बस्ते के बोझ से आज़ाद हूँ।


नही हैं मुझे पहचान अमीरी गरीबी की

 पर सबको एक जैसा देख मैं आज़ाद हूँ।


हाँ मेरी आज़ादी मेरा अधिकार है,

इस स्कूल में मेरी मुस्कान बताती है कि मैं आज़ाद हूँ।


 तो जब मिली है हमें  इतनी आजादी

तो क्यों करे हम इसकी बर्बादी।


 आज मिलके हम सब यह कसम खाएँगे,

जब मिली है इतनी आज़ादी तो खुद को बढ़ाकर दिखाएँगे।


सरकार की  दी चीजों से, खुद को शिक्षित बनाएँगे,

मास्साब से बहाने करके, स्कूल से न दूरी बनाएँगे।

 

पढ़कर दिखाएँगे, बढ़कर दिखाएँगे,

देश का राष्ट्र हम बनाएँगे।

    

रचयिता

फराह नाज़,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय आलमपुर,

विकास खण्ड-जगत,

जनपद-बदायूँ।

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