विजयादशमी का पर्व

 जीवन में उमंग, आनन्द देने,

विजयादशमी का पर्व है आया

प्रेम- उत्साह का रस भरने को

संग में प्रेरणा देने आया।

सुख, शांति, आरोग्य साथ रहे

हो दूर अज्ञान, कुविचार सबके

सदाचार, विवेक, सत्य सबमें

नित्यप्रति ही बढें, झलकें।

हम बनें निज संस्कृति वाहक

सत्कर्मों की अलख जगायें मिलकर

मिटे अहं का रावण सबसे

सरलता हो वाह्याभ्यंतर।

सहस्र कमल-सम खुशियाँ होवें

बल, सामर्थ्य के अनगिनत सितार बजें

अज्ञान, तिमिर का छंटे कुहासा

समरसता, विवेक का भाव जगे।

अनमोल इस मानव-तनसे

नित कर्म कर सफलता पाएँ

रोग, दंभ, द्वेष समूल नष्ट हों

नैतिकता की साज सजाएँ

दूर समाज से हर रावण हो

न हो किसी की मति विपरीता।

बनें राम सम आदर्श जीवन के

संदेश दशहरे का कहती गीता।


रचयिता
गीता जोशी, 
सहायक अध्यापक,
राजकीय कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय जैनौली, 
विकास खण्ड-ताड़ीखेत, 
जनपद-अल्मोड़ा,
उत्तराखण्ड।



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