217/2024, बाल कहानी- 28 नवम्बर


बाल कहानी - काबिलियत
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राधा और आकांक्षा बचपन की सहेली हैं। दोनों ने बचपन से लेकर आठवीं तक की शिक्षा पास के सरकारी स्कूल से प्राप्त की। आज दोनों ने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली थी और दोनों चहकते हुए घर जा रही थीं।
राधा के पिता रामू एक गरीब किसान और आकांक्षा के पिता हीरालाल गाँव के सरपंच थे। दोनों बेटियों ने पास के राजकीय विद्यालय में आगे पढ़ने का मन बनाया है, परन्तु राधा के पिता ने गरीबी का हवाला देते हुए अपनी बिटिया को आगे पढ़ाने से मना कर दिया।
एक दिन आकांक्षा विद्यालय जा रही थी। तभी उसकी नजर राधा पर पड़ती है। वह राधा से आगे न पढ़ने का कारण पूछती है। राधा अपनी पिता की गरीबी का हवाला देकर चुप हो जाती है। 
शाम हो जाती है। गरीब रामू खेत से वापस लौटा ही था कि राधा के रोने की आवाज उसके कानों में सुनायी देती है। बड़े प्यार से वह बिटिया के रोने का कारण पूछता है। आखिरकार बिटिया के आगे पढ़ने की इच्छा को वह सहर्ष स्वीकार करता है और दिन-रात मेहनत करने लगता है। उसकी बेटी राधा भी अपने पिता को निराश नहीं करती है। वह भी पूरी ईमानदारी से पढ़ाई करती रहती है। हाईस्कूल और इण्टरमीडिएट में अव्वल आने के बाद राधा यहीं ही नहीं रुकती बल्कि डॉक्टरी की परीक्षा भी उत्तीर्ण करती है।
जब यह खबर गाँव में पहुँचती है तो गरीब रामू खुशी से फूले नहीं समाया। सबसे यही कहते फिर रहा है कि, "बेटी की काबिलियत बेटों से कम नहीं है। बेटे के साथ-साथ बेटियों को भी पढ़ा-लिखाकर उनका भविष्य उज्ज्वल बनाइये।

#संस्कार_सन्देश -
पुत्र और पुत्री की शिक्षा में भेद न करें। बेटियों को भी अच्छी देकर उनका मान बढ़ायें।

कहानीकार-
दीपक कुमार यादव (स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय मासाडीह,
महसी, बहराइच (उ०प्र०)

कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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