आष्टांग योग
प्रणायामहु यम नियम, आसन प्रत्याहार।
ध्यान धारणा आठवाँ, है समाधि स्वीकार।।
1:-प्राणायाम-(4अंग)
रेचक पूरक कुम्भकहु, प्राणायाम प्रकार।
क्रम-विचार अवलोक का, चौथा साधन सार।।
2:-यम(5 व्रत):-
सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, अस्तेय।
यम के व्रत ये पाँच हैं, धारक वीर अजेय।।
3:-नियम(5साधन):-
'शौच' और 'संतोष' 'तप', हैं साधन 'स्वाध्याय'।
'ईश्वरशरणागति' सभी, पाँचहु नियम कहाँय।।
4:- आसन:-पद्मासन साधने हेतु बहुत प्रकार के आसनों का प्रयोग आवश्यक है ताकि अधिकाधिक समय तक आसन अथक और निर्बाध हो सके।
ताप कुचालक घास कुश, ता ऊपर मृगचर्म।
थोड़ी ऊँची आसनी, शुचिता आसन मर्म।।
सीधी ग्रीवा रज्जु हो, हिलाना-डुलना बंद।
शनैः शनैः अभ्यास से, आसन सुख स्वच्छन्द।।
5:-प्रत्याहार:-
इंद्रियवृत्ति समेट कर, चित्त में करे निरुद्ध।
मन को बस कर राखिये, 'प्रत्याहार' विशुद्ध।।
6:-धारणा:-
श्रद्धा हो जिस पर घनी, वहाँ वृत्ति संधान।
नाम दिया है 'धारणा', योगशास्त्र विज्ञान।।
7:-ध्यान:-
ध्येय वस्तु ही केंद्र में, अन्य दूसरी नाहिं।
'ध्यान' नाम (एकाग्रता), इत उत डोले नाहिं।।
8:-समाधि:-
चित्तवृत्ति खो जाँय सब, करो आत्म संधान।
रहे न 'हूँ' का भान भी, तत समाधि पहचान।।
रचयिता
हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।
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