मैं प्रकृति हूँ
किरणों के सौंदर्य ने सागर को हौले से छुआ।
स्वर्ण की लहरें उठीं, ज्योतिर्मय सारा तट हुआ।।
वृक्षों की कोमल शाखाएँ,
शीतल पवन झूमकर वंदन हुआ।
चंचलता तज कर नजारा नत हुआ।
मन का विश्वास नज़र का फेर हूँ,
मै ज्योतित हूँ, मैं प्रकृति हूँ।।
बचा लो मुझे, मैं हूँ तो तुम हों।
वरना अटकी होंगी साँसें,
ना होंगे पादप पशु, ना होगा जल।
ना होगा तू और ना ही होगा तेरा कल।।
विनाश काले विपरीत बुद्धि,
आओ मिलकर करें नदियों की शुद्धि।
अगर आने वाली पीढ़ी को बचाना है,
तो कर लो प्रण प्रकृति को सजाना है।।
रचयिता
प्रियंका गौतम,
प्रधानाध्यापक,
कंपोजिट विद्यालय कन्या एत्मादपुर,
विकास खण्ड-एत्मादपुर,
जनपद-आगरा।
Comments
Post a Comment