पापा की परी
हाथ थाम कर चलना सिखाये,
गोदी उठा कर जग दिखलाये।
चोट लगे जब भी बच्चे को,
प्यार से पुचकारे, मरहम लगाये।
धड़कन में बस्ती हूँ, मैं तेरे पापा
ऊपर से स्वयं को, सख्त दिखाये।
रात-दिन मेहनत कर, घर चलाते,
पढ़ा-लिखा कर हमें, काबिल बनाते।
खेल-खिलौने, हमें मिठाई लाते,
शैतानी करूँ तो, डाँट से बचाते।
कितना कुछ है कहने सुनने को,
'पापा की परी' कह भैया चिढ़ाते।
निराशा, दुविधा में जब मैं होती,
संबल बन, आप मुझे मार्ग दिखाये।
जग में सबसे, हैं न्यारे पापा,
हमको लगते सबसे प्यारे पापा।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
सहायक अध्यापक,
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
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