योग
योग एक ऐसी कला, जोड़ तन-मन-प्राण।
स्वस्थ सबल सक्रिय रखे, हो रोगों से त्राण।।
ध्यान, धैर्य, बल-धारिता, सर्वांगीण विकास।
अनुशासन पैदा करे, योग गजब अभ्यास।।
चमकदार सुन्दर बदन, अंग-अंग हो चुस्त।
टूटी - फूटी कोशिका, होती रहें दुरस्त।।
हृदय हमारा स्वस्थ हो, उत्तम पाचन तंत्र।
भला रक्त परिसंचरण, रखे योग का मंत्र।।
जो सुख-सुविधा में रहें, शारीरिक श्रम दूर।
स्वास्थ्य हेतु अनिवार्य है, उन्हें योग भरपूर।।
रचयिता
कवि सन्तोष कुमार 'माधव',
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सुरहा,
विकास खण्ड-कबरई,
जनपद-महोबा।
आ.पहले दोहे के दूसरे चरण में #जोड़ की जगह..... जोड़े करने का कष्ट करें सादर 🙏
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