आकांक्षा

जटा जूट गंग धर, फण काढ़े विषधर,

            नेत्र है त्रिपुण्ड बीच ,शोभा बेमिसाल है।

नीलकण्ठ मुण्डमाल,कटि में बाघम्बर खाल,

             सोहे तन में भभूत, अर्धचंद्र भाल है।।

पान कर लिया भंग, काम को किया अनंग

              त्रिशूल  कराल  हर, डमरू निहाल है।

शिवा शिव"निरपेक्ष", दर्श कामना सापेक्ष,

             नटराज! कृपाकांक्षी,काल दिगपाल है।।


प्रार्थना


श्रद्धा मेरी हो अटूट ,कुमति न डारे फूट,

              विश्वनाथ मन के विश्वास बन जाइये।

काम क्रोध लोभ मोह ,वास करें गिरि खोह,

              मनेश्वर!द्वेष को भी,मन से भगाइये।।

हरि! हर क्लेश क्लान्त,कर चित्त वृत्ति शांत,

                भव भय भीर पीर,भ्रम से छुडाइये।।

"निरपेक्ष"एक चाह, जीवन हो मुक्त डाह,

                 सत्य शिव सुन्दर-विवेकहु जगाइए।


रचयिता

हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।

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