महादेवा

तर्ज > राम जी की निकली सवारी 


महादेवा की निकली सवारी,

महादेवा की लीला है न्यारी।

गौरा जी उनके संग में विराजे,

आए हैं करके नंदी सवारी।


हाथ कमंडल माथे पे चंदा,

जटाओं में उनकी समाई हैं गंगा।

गले मुंडों की माला, तन पे मृगछाला,

अधरों पे उनके है विष का प्याला।

भोली सी सूरत, करुणा की मूरत,

मिलेगी कहीं ना ये छवि प्यारी।

महादेवा की निकली सवारी....


बेल धतूरा तुझको चढ़ावें,

माथे पे चंदन तिलक लगावें।

चरणों में तेरे हम पुष्प चढ़ावें,

सच्चे हृदय से जयकारा लगावें।

आस लगाए, झोली फैलाए,

कब से खड़े हैं हम त्रिपुरारी।

महादेवा की निकली सवारी....


दुष्टों का फिर से संहार करने,

त्रिशूल का फिर से वार करने।

मानवता लाचार बड़ी है,

कब से लगाए आस खड़ी है।

भव पार कर दो, उद्धार कर दो,

चमका दो अब तो किस्मत हमारी।

महादेवा की निकली सवारी....


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



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