योग- तरंग

तरंग, तरंग, तरंग,

तरंग से ही है उमंग,

फैला है तरंगों का जाल,

जिससे चलते सृष्टि के तार।

हो तरंगों का संचरण,

तब ही हों सारे काम,

मोबाइल, टी.वी, हो जायें ठप,

न हो अगर तरंगों का संचरण।

तरंगों  का विज्ञान,

आये  बड़े  काम,

बिना  इसके  आज,

हम हैं बेजान।

योग  तरंगों का संचरण,

करना  है  आज,

शुद्ध  हो वायुमंडल,

सुरक्षित  हो नवजात।

योग-साधना से करें प्राप्त,

परमात्मा शक्ति  अपार,

करें परमात्म शक्ति का तरंग संचरण, 

हो तब स्वस्थ  सुखी संसार। 

शुद्ध तरंगें  ही लायें  परिवर्तन,

तरंगों में  ही जीवन के रंग,

तरंगों  में  ही  ऊर्जा  अपार,

तरंगें  ही हैं  उमंगों  का  द्वार।

मन का आयाम,

तन का आयाम,

हैं  सब,

योग  तरंगों  का  परिणाम।।


रचयिता
अर्चना गुप्ता,
प्रभारी अध्यापिका, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिजौरा,
विकास खण्ड-बंगरा,
जिला-झाँसी।


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