कीमती उपहार

नेहा गर्मियों की छुट्टियों में अपनी बुआ के पास आई थी। बुआ के यहाँ का प्राकृतिक वातावरण बहुत अच्छा था। वह कुछ दिन के लिए वहीं रुक गई।

"अरे! बुआ आपने तो बहुत सारे गमले और पौधे लगा रखे हैं।"

 एक दिन नेहा ने बुआ से कहा-

हाँ बेटी! यह मैंने नहीं तुम्हारे फूफाजी ने लगाए हैं, उनको ही इस तरह के कार्य करने का बहुत शौक है।

"अच्छा बुआ!"

"हाँ नेहा! वह तो घर आए मेहमान को भी उपहार के रूप में पौधा भेंट करते हैं।"

"बहुत अच्छी बात है।"

नेहा ने कहा।

शाम को फूफाजी जब घर आए तो नेहा ने पर्यावरण से संबंधित खूब सारी बातें की।

हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ कैसे रखें?

"नेहा! वृक्ष हमें ऑक्सीजन देते हैं और प्रदूषण को कम करते हैं, बारिश लाने में हमारी मदद करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और हमें छाया, फल, लकड़ी आदि बहुत कुछ देते हैं।"

फूफाजी ने नेहा को समझाया, फूफाजी की बातें नेहा बहुत ध्यान से सुन रही थी।

अब नेहा फूफाजी के साथ रोज पेड़ पौधों की देखभाल करने लगी और उसमें  उसे आनंद आने लगा।

पाँच जून को विश्व पर्यावरण दिवस था सो फूफा जी ने आसपास के क्षेत्रों में खूब वृक्षारोपण कराया।

 नेहा को बहुत अच्छा लगा।

      नेहा को बुआ के घर पर आए आठ  दिन हो गए थे उसको अपने घर जाना था और विद्यालय का होमवर्क भी करना था। नेहा जब पापा के साथ अपने घर जाने लगी तो फूफाजी  ने उसे तुलसी और नीम के दो पौधे उपहार में दिए और कहा-

"नेहा तुम इनको लगाकर इनकी देखभाल करना मेरा यह तुम्हारे लिए उपहार है।"

नेहा मुस्कुराई और उसने फूफा जी को धन्यवाद देते हुए कहा-

"फूफा जी बुआ ने मुझे जो कपड़े और रुपए उपहार में दिए हैं उन सबसे ज्यादा उपयोगी मेरे लिए आपका दिया यह उपहार है। मैं इन्हें लगाकर इनकी देखभाल करूँगी साथ ही अपने दोस्तों से भी कहूँगी कि हम भी घर पर आए मेहमान को पौधा भेंट करें और सभी लोगों को ज्यादा से ज्यादा पेड़- पौधे लगाने को प्रेरित करें।"

तो आइए! इसकी शुरुआत हम सभी पर्यावरण दिवस से करते हैं।    

 प्रिय छोटे भाई श्री कीरत यादव जी आवास रामपुर जाने पर पौधा भेंट करते हुए एक नई शुरुआत है। आइए हम भी यह शुरुआत करें।


रचयिता

यशोधरा यादव 'यशो'

सहायक अध्यापक,

कंपोजिट विद्यालय सुरहरा,

विकास खण्ड-एत्मादपुर,

जनपद-आगरा।



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