पितृ दिवस

पिता को ईश्वर ने बनाया निराला

घर परिवार की खुशी के लिए

पी जाता है सब दुख दर्द का प्याला,

खुशी के पल में सबसे ज़्यादा जो खुश होता है वो है पिता 

पर दुख के समय भावों को छुपा लेता है।

परिवार की खुशहाली की खातिर

अपनी ख्वाहिशें दबा देता है।

उसके भी कभी  कुछ अरमान थे

परिवार के आगे सब भूल जाता है।

हर मुसीबत में पहाड़ सा खड़ा रहता है,

बताओ ना इतनी हिम्मत कहाँ से लाता है?

मुसीबत पड़ने पर परिवार का

हर सदस्य टूट जाता है

एक पिता है जो एक मजबूत स्तंभ सा खड़ा रहता है

कभी सोचा है इतनी हिम्मत कहाँ से लाता है

बच्चों और परिवार की

ख्वाहिश पूरी करते-करते

अपनी चाहतें ही भूल जाता है

वह भूल जाता है कि उसके भी कुछ अरमान थे, कुछ सपने थे

जिन्हें वह भी कभी  पूरी करना चाहता था

लेकिन आज वह बच्चों की खातिर

सब भुलाए बैठा है

याद है तो बस बच्चों के सपने, बच्चों की खुशियाँ,

और उन्हें ऊँचाइयों तक पहुँचाने का जुनून,

ताकि उसके बच्चे एक अच्छा भविष्य पा सकें, 

अपने जीवन को सुख सुविधाओं से पूर्ण बना सकें।

इसी चाह में एक पिता जीवन बिता देता है,

बताओ ना इतना समर्पण और त्याग उसमें कहाँ से आता है।

अपने हृदय की पीड़ा और अपना दुःख,

हम सब से छुपा लेता है,

मानो पिता को ईश्वर समुद्र सा हृदय  दे देता है।

हाँ सच ही तो है, एक पिता ही है,

जो निस्वार्थ भाव से

परिवार को सुख और खुशियों से भर देता है।


रचयिता

दीपा कर्नाटक,
प्रभारी प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय छतौला,
विकास खण्ड-रामगढ़,
जनपद-नैनीताल,
उत्तराखण्ड।

Comments

Total Pageviews