वसुधैव कुटुम्बकम के मूल में योग

विश्व योग दिवस पर आओ

             सीखें और सिखायें योग,

दुनिया भर ने अपनाया है

            हम भी तो अपनायें योग।


भौतिक वादी युग में मानव

         अवसाद  ग्रस्त हो जाता  है,

किंचित पता नहीं है उसको

       वह क्या खोता क्या पाता है।


'वसुधैव कुटुम्बकम' के मूल में

          समझें और समझायें योग।


कुछ  दृश्य-अदृश्य  रोगों से

        तन जीर्ण-शीर्ण हो जाता है,

दूषित जल और खानपान से

      सब अस्त-व्यस्त हो जाता है।


योग दिवस पर दुनिया भर में

     पहुँच रहा जन-जन तक योग।


योगेश्वर  भगवान श्री कृष्ण

         जो प्रवर्तक कर्म योग के थे,

गुरु गोरख संत कबीरदास

       प्रतिस्थापक कर्म योग के थे।


प्रारम्भिक शिक्षा केंद्रों में भी

       हम सीखें और सिखायें योग।


अखिल विश्व से है ये कहना

             स्वास्थ्य के लिये हो योग,

प्रतिदिन के जीवन शैली में

        सम्मिलित कर लें अब योग।


सन्तों मुनियों की तपोभूमि से

        दुनिया  भर में  फैलायें योग।


अगर आज संकल्पित होकर 

       जो हम  करते  रहें नित योग,

सदा रहेगा तन मन स्वस्थ

        मिथ्या औषधि का उपयोग।


'मानवता' के लिए चलो

        हम घर-घर में पहुँचायें योग।


रचयिता
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश',
सहायक अध्यापक, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, 
विकास खण्ड-लक्ष्मीपुर, 
जनपद-महराजगंज।

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