प्रकृति साक्षात जननी

प्रकृति है साक्षात जननी,

निर्माण, पोषण, भरण, रक्षण

सब है इन्हीं की करनी।

प्रकृति है साक्षात जननी,


हम नहीं इसके रक्षक,

यह स्वयं हमारी रक्षक हैं।

दंभ में शायद हम भूल गए थे,

तभी आई इतनी बड़ी विपत्ति,

यह तो मानव की सब है करनी,

प्रकृति है साक्षात जननी।

निर्माण, पोषण, भरण, रक्षण

सब है इन्हीं की करनी।


जंगल, नदी, पहाड़, समुद्र,    

इनसे बस लेना सीखा,

पर देना इनको भूल गए।

करोना, तूफान, टिड्डी, हमला, बाढ़

यह है हमको चेतावनी।

हे मानव बंद करो यह मनमानी,

प्रकृति है साक्षात जननी,

निर्माण, पोषण, भरण, रक्षण

सब है इन्हीं की करनी।


माँ की गोद सा सुरक्षित आँचल,

सदा रहा प्रकृति का,

हम ही रहे हैं उदंड बालक,

मान न किया जननी का,

अब तो चेत जाएँ हम,

मानव जाति को बचाएँ हम।

इस पावन धरा को 

फिर से हरा-भरा बनाएँ हम।

सब को ये शपथ है खानी,

भूल हुई हमसे बहुत,

हुई बहुत नादानी।


प्रकृति है साक्षात जननी,

निर्माण, पोषण, भरण, रक्षण

सब है इन्हीं की करनी।

प्रकृति है साक्षात जननी,


रचयिता

सुधा गोस्वामी,
सहायक शिक्षिका,
प्रथमिक विद्यालय गौरिया खुर्द,
विकास क्षेत्र-गोसाईंगंज,
जनपद-लखनऊ।

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