मिशन शिक्षण संवाद क्या और क्यों
★मिशन शिक्षण संवाद★
किसी प्राणी का सुखी जीवन उसके कर्मों के संतुलन का आधार है। यदि आप सुख चाहते हैं, सम्मान चाहते हैं और जीवन में शान्ति चाहते हैं तो जीवन के प्रत्येक पक्ष का संतुलन बना कर चलना पड़ेगा।
लेकिन विगत कुछ वर्षों से लगातार देखने को मिला की कहीं न कहीं हम शिक्षक अपने अधिकारों और कर्तव्यों में संतुलन बनाने में चूक कर रहें। हम अपने अधिकारों के प्रति सजग हुए, संगठित हुए और संघर्ष भी किये। लेकिन इस बीच यह भूल गये कि हम जिसके लिए संघर्ष कर रहे है, उसका आधार तो कही कमजोर नहीं हो रहा है। हमने अपने अधिकारों की बात तो की लेकिन एक शिक्षक के अस्तित्व शिक्षण के लिए मिलने वाले समय के सदुपयोग के लिए प्रयास और बात करना भूलते चले गये। परिणाम यह हुआ कि आज हम कुशल शिक्षक के अतिरिक्त कुशल मास्टर बन गये। जो गैरशैक्षणिक कार्यों को करने में सबसे मेहनती और ईमानदार सेवक हैं।
हमारा कार्य क्षेत्र ऐसे लोगों के बीच है जो आज भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हो सके। जिसका सरकार और शासन ने पूरा लाभ उठाया। हमें मूल कार्यों से हटा कर अनेकों कार्यों का विशेषज्ञ बना दिया। हमारी कार्य कुशलता के सहयोगी प्रशिक्षण, पोस्टिंग और प्रोत्साहन को कार्य कुशलता की जगह पैसों की दृष्टि से देखा जाने लगा। बेसिक शिक्षा में कागजों के ऐसे चक्रव्यूहों की रचना की, जिसमें शिक्षक, शिक्षण को बचाने के लिए चाह कर भी बेवस नजर आने लगा। नतीजा यह हुआ बेसिक शिक्षा को नकारात्मकता का प्रतीक घोषित किया जाने लगा। जबकि ऐसा था नहीं। क्योंकि किसी झूठ को भी सौ बार कहा जाय तो वह भी सत्य प्रतीत होने लगता है। यही बेसिक शिक्षा में हुआ। कुछ शिक्षकों के सहयोग से सब कुछ नकारात्मक कहा जाने लगा। इससे अपने-अपने स्वार्थ और लालच की पूर्ति हुई और बलि का बकरा बनने का जब नम्बर आया तो हमेशा की तरह कमजोर कड़ी आम शिक्षक और उसकी बेसिक शिक्षा ही बनी। जिसने काम भी किया, सम्मान और अधिकार भी नहीं मिले। शोषण का माध्यम अलग बना। इसमें समाज ने साथ इसलिए नहीं दिया क्योंकि उसके अधिकारों को शिक्षकों ने स्वयं लुटते देखा, फिर भी बचाने का प्रयास या तो किए नहीं या बेवस होकर कर न सके। संगठनों ने शिक्षक शब्द में बजन महसूस किया, जिससे शिक्षक शब्द छोड़ अध्यक्ष जी , मंत्री जी आदि अनेक नाम व पद पाने के पीछे दौड़ने लगे। जिससे बेसिक शिक्षा में नकारात्मक और हतोत्साहित करने जैसा माहौल बनता चला गया।
जबकि हम शिक्षक सुदूर, दुर्गम ग्रामीण परिस्थितियों में और विपरीत परिवेश में भी काम कर रहे थे। जिसकी आवाज और कार्य वहीं दुर्गमता और अव्यवस्था का शिकार होकर दबते रहे। जिससे शिक्षकों के बीच कुण्ठा और नकारात्मकता का माहौल जड़े जमाने लगा। जिसका शिकार होकर हम स्वयं बेवस और लाचार रहे। सहयोग के नाम पर प्रोत्साहन की जगह नशीहत और समझौता वादी नीति और किसी तरह नौकरी करने और बचाने का उपदेश बहुत पीड़ाकारी और धिक्कारने वाला काम लगने लगा। क्योंकि सब कुछ करने के बाद भी कुछ न करने का अपमान घुट- घुट कर जीने को मजबूर करता रहा। इसी बीच सोशलमीडिया और अच्छे शिक्षकों के सम्पर्क से उत्साह और जीवन जीने के आधार के साथ शिक्षक और शिक्षण का अस्तित्व नजर आने लगा। यही से शुरू हो गया एक आपसी सीखने- सिखाने और प्रेरणा-प्रोत्साहन का अनुकरणीय सकारात्मक सोच का संवाद जो धीरे-धीरे बेसिक शिक्षा के उत्थान और शिक्षक के सम्मान के उद्देश्य के साथ बन गया- “मिशन शिक्षण संवाद„
मिशन शिक्षण संवाद आज बेसिक शिक्षा के अनमोल रत्नों के आपसी सहयोग से सीखने-सिखाने का सशक्त माध्यम बनता जा रहा है, जो बेसिक शिक्षा के अनुकरणीय और प्रेरक कार्यों को उनके परिचय के साथ उत्तर प्रदेश के ४८ जनपद सहित छः प्रदेशों तक प्रोत्सहित करते हुए शिक्षकों में सकारात्मक सोच और कुछ नया करने की प्रेरणा जगा रहा।
मिशन शिक्षण संवाद का भविष्य का लक्ष्य उस प्रतिशत पर है जो शिक्षक किसी न किसी कारण से हतोत्साहित है, क्योंकि मिशन शिक्षण संवाद का मानना कि बेसिक शिक्षा का 10% शिक्षक किसी भी परिस्थिति में अपने कर्तव्य को परिणाम तक पहुँचाने की शक्ति रखता है। और 40% शिक्षक ऐसा है जो अच्छा काम करना तो चाहता है लेकिन विभागीय या आपसी समस्याओं के कारण कुण्ठित या हतोत्साहित है। इस तरह के शिक्षकों को प्रोत्साहित कर उनकी समस्याओं का आपसी सहयोग से समाधान करने का प्रयास कर प्रतिशत को बढ़ाया जा सकता है। इसके बाद लगभग तीस प्रतिशत ऐसा शिक्षक है जो व्यवस्था के ढर्रे में फंस कर करने या न करने की कुछ सोचता ही नहीं है, जब जैसा समय, तब तैसा काम कर अपनी नौकरी को रखा रहा है। लेकिन यह जब 10% + 40% को अच्छा काम करता देखेगा तो उसे ढर्रे का माहौल प्राप्त न होने पर भले ही स्वतंत्र रूप से अच्छा करने के लिए नेतृत्व न करे लेकिन सहयोगी अवश्य बनेगा। अब अच्छे और बेसिक शिक्षा के उत्थान के लिए शिक्षकों का प्रतिशत होगा 10% + 40%+ 30% = 80% जो बेसिक शिक्षा को स्वर्णिम युग में पहुँचा सकता है। अब जो बीस प्रतिशत शिक्षक सत्ता या व्यवस्था का करीबी है या तो स्वयं सुधर जायेगा या सेवा से मुक्ति पाने को मजबूर हो जायेगा। इस लक्ष्य के लिए मिशन शिक्षण संवाद आप सबके सहयोग और प्रोत्साहन का आकांक्षी है।
आओ हाथ से हाथ मिलायें,
बेसिक शिक्षा का मान बढ़ाये।
बेसिक शिक्षा का मान बढ़ाये।
क्योंकि--
जब होगा शिक्षा का उत्थान,
तभी मिलेगा शिक्षक को सम्मान।
जब होगा शिक्षा का उत्थान,
तभी मिलेगा शिक्षक को सम्मान।
साभारः विमल कुमार
मिशन शिक्षण संवाद उ० प्र०
मिशन शिक्षण संवाद उ० प्र०
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