तुम शान बनो

अन्धकार को दीपक जैसे
जलकर दूर भगा देता है
प्रेम, घृणा के बीज को जैसे
मिट्टी में दफना देता है
उसी तरह हे शिक्षक तुम
नन्हीं कलियों के उपवन में
माली का एक औज़ार बनो
मत घबराओ काँटों से
काँटों का तुम संहार बनो।

रवि की किरणें आकर जैसे
पृथ्वी का तम हर लेती है
रात चाँदनी होकर जैसे
राही का कर धर लेती है
उसी तरह हे शिक्षक तुम
नन्हें विहगों के इस नभ में
धरती का एक चाँद बनो
मत घबराओ अमावस से
पूर्णमासी की शान बनो।

बहता जल नदियों का जैसे
जीवन की आस बँधा देता है
तपती धरती पर बादल जैसे
अमृत जल बरसा देता है
उसी तरह हे शिक्षक तुम
नन्हें नौचालक की जलमाला में
नाविक की दृढ़ पतवार बनो
मत घबराओ लहरों से
लहरबाज़ तुम बयार बनो।

रचयिता
तिलक सिंह,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रतरोई,
विकास खण्ड-गंगीरी,
जनपद-अलीगढ़।

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