अनुशासन हेतु कुछ गुर
प्रार्थना-सभा के दौरान निम्नलिखित प्रश्न पूछकर विद्यार्थियों में संस्कारों का बीजारोपण किया जा सकता है :-
(मर्म कथन : प्यारे बच्चों, यदि तुम गलत जवाब दोगे तो अपना ही नुकसान करोगे क्योंकि तुम मेरी निगाह से भले ही बच जाओ, लेकिन भगवान/अल्लाह को धोखा नहीं दे पाओगे, इसलिए सारे बच्चे पूरी ईमानदारी से जवाब देंगे।)
कौन-कौन 5 बजे से पहले उठ गया ?
किस-किसने दांत साफ़ किये?
कौन-कौन नहाकर आया है?
कौन-कौन बड़ों को नमस्ते/सलाम/प्रणाम करके आया है?
किस-किसने बड़े भाई/बहन का नाम नहीं लिया और उन्हें भइया/जीजी/बाजी कहा?
किस-किसने कल घर पर कम-से-कम एक घंटा पूरे मन से पढ़ाई की?
किस-किसने अपने छोटे भाई-बहन को पढ़ाया?
किस-किस बच्चे ने कल घर या खेत के काम में घरवालों का हाथ बँटाया?
क्या कल किसी बच्चे ने घर के लोगों के अलावा अन्य किसी की कोई मदद की? की हो तो बताये।
किस-किसने कल दूसरों के लिए नल चलाया?
कल कौन-कौन खाते समय बिल्कुल नहीं बोला (सिवाय ज़रूरी बात के)?
किसने आज प्रार्थना के दौरान एक बार भी आँख नहीं खोली?
प्रार्थना करते समय किस-किस बच्चे ने भगवान/अल्लाह को याद किया?
अगर कल किसी बच्चे के मुँह से कोई गाली निकली हो या उसने खाना फेंका हो या कोई अन्य गलती हुई हो तो स्वीकार करने की ईमानदारी और साहस दिखाए और आगे से वह ऐसा नहीं करेगा, इसकी पूरी कोशिश करने का वचन दे।
......
......... आदि (जो सुधी शिक्षकगण जोड़ना चाहें)
साप्ताहिक आधार पर उन बच्चों को अलग पंक्ति में खड़ा करके उनके लिए तालियाँ बजवाना और पुरस्कृत करना
जो रोज़ आते हैं और समय से आते-जाते हैं।
जो अत्यावश्यक कार्य के अलावा जल्दी छुट्टी देने को नहीं कहते।
जिनकी शिकायत नहीं आती।
जो साफ़-सुथरे गणवेश (यूनिफॉर्म) में आते हैं।
जो मितभाषी और मृदुभाषी हैं।
जिनकी कॉपी-किताबें अच्छी दशा में पायी जाती है।
जो शांत-भाव से पूरे ध्यान से पढ़ते हैं।
जिनकी भाषा और हाव-भाव में शिष्टाचार समाहित रहता है।
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छोटे बच्चों के लिए कुछ 'प्रभाव-संभव' आह्वान
पूरे मन से पढ़ोगे या आधे मन से?
देख-देखकर बोलेंगे, बोल-बोलकर लिखेंगे।
(लड़ने वालों से) पढ़ने आये या लड़ने?
(नक़ल का काम माँगनेवाले बच्चों से) नक़ल चाहिए या अकल?
(लिखने पर जोर देने वाले बच्चों से) कॉपी भरना है या दिमाग?
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लेखक:-
प्रशांत अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र -फतेहगंज पश्चिमी,
जिला -बरेली।
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