वर्षा की आस

सागर ने बोला बूँदों से, अब तुम ऊपर उठ जाओ
आसमान में बादल बनकर बच्चों का मन बहलाओ।
बाँह पकड़कर बादल का फिर, हवा ने उसको दौड़ाया
दौड़ते - दौड़ते उन दोनों के, सामने एक पर्वत आया।

बोला सुनो कहाँ जाते हो, थोड़ा यहाँ ठहर जाओ
अपने जल की बूँदों को, मेरे पेड़ों पर बरसाओ।
बात सुनी उसने पर्वत की और वहाँ पर ठहर गया
 बात रखी उसने पर्वत की और वहाँ पर बरस गया।

वर्षा रानी ने बोला बादल से,  अब मैं चलती हूँ
धरती बोली वर्षा रानी, आओ तुम्हें पकड़ती हूँ।
आसमान में बादल ने फिर, अपना रॉब दिखा डाला
पूरे आसमान में  फैला, सूरज को भी ढक डाला।

 बादल ने फिर गरज गरज कर  खूब वर्षा कर डाली
सारी धरती को वर्षा रानी, पानी  से तुम भर डाली।
रंग-बिरंगे छाते लेकर,  मेंढक बहुत निकल आये
छातों ने बोला मोरों से, भैया तुम क्यों शरमाये।

मिलकर गाओ नाचो कूदो, मस्ती में खो जाओ तुम
उछलो नाचो कूदो और खुशियों को फैलाओ तुम।
कागज ने बोला बच्चों से, मेरी नाव बनाओ तुम
ताल तलैया कहे कि मुझमें, अपनी नाव चलाओ तुम।

पेड़ों ने बोला वर्षा से तुम जब - जब भी आती हो
इस सारी धरती  को तुम तो,  हरा भरा कर जाती हो।
बारिश होते ही बच्चों के, चेहरे खुश हो जाते हैं
वर्षा रानी तुम आकर के, सबका मन हर्षाती हो।

रचयिता
सीमा नौटियाल, 
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय गाड़ी,
विकास खण्ड-दशोली,
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।

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