बंद स्कूलों की पुकार

आओ  मेरे  प्यारे   बच्चों
फिर से आँगन में तुम गाओ
धमा चौकड़ी  मचा मचाकर
फिर से प्रांगण को महकाओ

दीवारों  की  हरी  पट्टियाँ
सूनी  हैं  सब बिना तुम्हारे
प्रांगण के   ये  पेड़  रुख
और टाट पट्टियाँ तुम्हें पुकारें
कब आओगे  नन्हें   मुन्नों
इतना  इनको  नहीं सताओ
धमा चौकड़ी मचा मचाकर
फिर से प्रांगण को महकाओ

चॉक उदास बैठे  डब्बों  में
डस्टर भी चुपचाप  पड़े   हैं
ब्लैकबोर्ड  की  पीड़ाओं  के
बादल भी तो बहुत  बड़े  हैं
आ जाओ  मुस्कान  बिखेरो
अब तो इनको नहीं रुलाओ
धमा चौकड़ी मचा मचाकर
फिर से प्रांगण को महकाओ

मार   दहाड़े  रो  देती  हैं
कभी-कभी तो ये  दीवारें
कमरों के खिड़की  दरवाजे
सिर्फ  तुम्हारी राह निहारें
रूठ गए क्यों सभी एक दम
माफ़ करो अब आ भी जाओ
धमा चौकड़ी  मचा मचाकर
फिर से प्रांगण को महकाओ

फूल  हो तुम मेरे आँगन के
आओ खिलो चमन महकाओ
ज्ञान पिपासा है जो मन में
फिर से आकर उसे बुझाओ
तुम बिन मैं मुरझाया सा हूँ
आओ फिर से मुझे खिलाओ
धमा चौकड़ी मचा  मचाकर
फिर से प्रांगण को महकाओ

बहुत दिनों से गुरुजनों से
लिया नहीं आशीर्वाद भी
मुझे नहीं लगता है तुमको
बहुत रहा हो पाठ याद भी
गुरुजनों के साथ मेरे भी
आशीषों को तुम ले जाओ
धमाचौकड़ी मचा मचाकर
फिर से प्रांगण को महकाओ

पहले जब छुट्टी होती थीं
जल्दी वापस आ जाते थे
कुछ नन्हें-मुन्ने घट जाते
लेकिन कुछ बढ़कर आते थे
कैसी पड़ीं छुट्टियाँ अब के
अब तो इनको खत्म कराओ
धमाचौकड़ी मचा मचाकर
फिर से आँगन को महकाओ

रचयिता
धर्मेंद्र सिंह,
सहायक अध्यापक (चयनित-डायट प्रवक्ता),
प्राथमिक विद्यालय हैवतपुर,
विकास खण्ड-ख़ैर,
जनपद-अलीगढ़।

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