वर्णमाला गीतिका

तर्ज़ - रामायण की चौपाई

अमरूद होता खट्टा मीठा, आम के बाग में घुस गया चीता।
इनाम पाकर खुश हो जाते, ईंट से देखो घर बन जाते।

उड़ान हमारी सबसे ऊँची,  ऊन को देखो काटे कैंची।
 ऋतुएँ देखो अनेक है आतीं,  ठंडी गर्मी वर्षा लातीं।

एक है देखो ईश्वर होता, ऐनक लगाकर सब कुछ दिखता।
ओस गिरे तो सर्दियाँ आतीं, औजारों से चीजें बन जातीं।

अंगों से मिलकर शरीर है बनता, अ: हमेशा खाली रह जाता।
कमल है खिलता कीचड़ में, खग है उड़ता आसमान में।

गन्ने के खेत में चूहा बैठा, घड़े में ठंडा पानी रखा।
ड० देखो होता खाली, खाने के लिए लाओ थाली।

चलकर तुम स्कूल आ जाओ, छप्पन भोग लगे हैं खाओ।
जगमग ज्योति जलती, झम झमाझम बारिश होती।

ञ देखो होता खाली, पेड़ पर देखो होती डाली।
तरकस से निकालो तीर एक, थल में रहते जीवन अनेक।

दलिया खाकर स्वस्थ हो जाओ, धन कमाकर घर को लाओ।
नहीं करो तुम कोई गलत काम, ले लो तुम अब राम का नाम।

पपीता होता पीला-पीला, फन है नाग का जहरीला।
बरगद की देखो लंबी लटाएँ, भय को देखो दूर भगाएँ।

मकड़ी देखो जाल बनाती, अपने लिए वह घर सजाती।
यंत्र अनोखे सबके पास, रस्सी देखो सबके खास।

लड़का देखो कितना सयाना, वन में देखो हमको जाना।
शरीर में देखो कितने अंग, षट्भुज में देखो अनेक रंग।

समुद्र में उड़ती हैं तरंगें,  हवा संग उड़ती मन की उमंगें।
क्षमा करने का गुण तुम सीखो, त्रया में तीन अंक हैं देखो।

ज्ञान देखो लो भरपूर, श्रमिक कहलाता है मजदूर।

रचयिता
आकांक्षा मिश्रा,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय सिकंदरपुर,
विकास खण्ड-सुरसा, 
जनपद-हरदोई।

Comments

Total Pageviews