आजादी

मुझे चाहिए आजादी,
भुखमरी और गरीबी से।
सबकी किस्मत सँवर जाए,
दूर रहे बदनसीबी से।

रोटी, कपड़ा और मकान,
यह तो है हर इक की शान।
कोई कभी भूखा ना सोये,
ऐसा हो भारत महान।

मुझे चाहिए आजादी,
न हो लिंग, भेद और अग्यानता।
वर्ण भेद मिट जाए और,
सबमें हो एकरूपता।

जाति-धर्म के भेद मिट सकें,
ऐसी हो सबकी मानसिकता।
गरीबी-अमीरी की खाई रहे ना,
नर-नारी में हो समानता।

मुझे चाहिए आजादी,
अंधविश्वास की बेड़ी से।
पल-पल हो तरक्की सबकी,
काम न हो कुछ देरी से।

भैया जैसी रहने की,
घर भर में चहकने की,
दिन भर खेलने -कूदने की,
घर में उधम मचाने की।

मुझे चाहिए आजादी,
दादी अम्मा बन करके।
सबमे धौंस जमाने की,
कहीं भी आने-जाने की।

चिड़ियों सी चहकने की,
फूलों सी महकने की।
बादलों में उड़ने की,
आसमां को छूने की।

रचयिता
बबली सेंजवाल,
प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय गैरसैंण,
विकास खण्ड-गैरसैंण 
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।

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