छुट्टियाँ

छूटा क्या - क्या छुट्टियों में, आज हुआ अहसास,
कुछ - कुछ रीतापन लिए, मन हो रहा उदास।
वो मासूम बचपन, वो निश्छल निगाहें,
बहुत याद आएँ, बहुत याद आएँ।
वो उजली सी ड्रेसें, चमकती पनहियाँ,
वो नन्ही गुड मॉर्निंग, लगती गलबहियाँ।
वो मोटा सा काजल, वो कंघी के बाल,
वो हल्की सी गलती पे, रुकती सी चाल।
ज़रा सी वो पेन्सिल, रबर भी न लाना,
कॉपी न होने पे, आँखें चुराना।
वो तुतलाती वन तू , थिली फोल फाइव,
अकौवा के बुड्ढे का, उड़ना उड़ाना।
वो खिड़की से बाहर का झांके  नज़ारा,
वो होंठो पे ऊँगली, वो चुप का इशारा।
चंदनिया के बीजों को मुट्ठी में लाकर,
खाना खिलाना, वो मन को लुभाना।
'लेओ गुरुजी 'कहके अंबिया खिलाना,
वो उऊँगली पकड़ उनको, लिखना सिखाना।
वो इकलाऔ दुकला, वो गुट्टे का खेल,
वो कंधे पकड़ के,चली देखो रेल।
वो गइया बिलइया की कुट्टी कराते,
बया चिड़िया रानी, हैं गाकर सुनाते ।
कभी घुड़सवारी, कभी नाचे घूमें,
कभी मूंगफलियों के गीतों पे झूमें।
वो छुट्टी का टाइम, खुशी कैसी-कैसी,
लो बालों की, ड्रेस की, हुई ऐसी -तैसी।
वो बस्ते में भर, अपनी खुशियों का संसार,
चले देखो घर को, लुटाकर हमें प्यार।
है छूटा बहुत कुछ ..... ,क्या क्या गिनायें,
वो भगवानियत् सी हैं, कोमल अदाएँ।
वो मासूम बचपन, वो निश्छल निगाहें,
बहुत याद आयें, बहुत याद आयें।।

रचयिता
पी0 आनन्द0,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय पेड़हथा, 
विकास खण्ड-शाहाबाद,
जनपद-हरदोई।

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