मिशन शिक्षण संवाद : हौंसले की उड़ान

शिक्षण कार्य वह बुनियाद है जिस पर सम्पूर्ण मानव समाज की सभ्यता और असभ्यता का दारोमदार होता है
और
इस बुनियाद को पुष्ट करना भी अपने आप में एक अत्यंत गुरुतर कार्य है।
इसी कार्य को करने का बीड़ा उठाया है 'मिशन शिक्षण संवाद' ने।

मिशन का मानना है कि एक शिक्षक में ईमानदारी, लगनशीलता और मौलिक प्रतिभा जैसे व्यक्तिगत गुणों के साथ ही इन गुणों को सामूहिक संरक्षण, प्रोत्साहन और संवर्धन मिलना भी बहुत ज़रूरी है। साथ ही शेष समाज में इनके कार्यों का प्रसारित होना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि मानव समाज में 'समूह मनोविज्ञान' अहम भूमिका निभाता है।

हर शिक्षक क्या, हर व्यक्ति में कुछ न कुछ विलक्षणता है, मौलिकता है, समाज को देने की सामर्थ्य है, ज़रूरत है उसे उर्वर मिट्टी, हवा और खाद-पानी मुहैया कराने की और मिशन शिक्षण संवाद यही सब उपलब्ध कराने के लिए सतत प्रयत्नशील है।

मिशन का यह भी  मानना है कि नैतिक शाश्वत मूल्यों की स्थिरता के बावजूद बदलते समय के अनुसार काम करने के तरीकों में भी बदलाव होता है जिसे हमें स्वीकारना चाहिए। 

इसीलिए मिशन ने आपसी संवाद, विचार-विनिमय, मौलिक कार्यों को संरक्षण और प्रोत्साहन देने के लिए whats app, blog, twitter, you tube आदि विभिन्न मंचों को उपलब्ध कराया है ताकि हर इच्छुक व्यक्ति अपनी-अपनी रुचि, सीमा और सुविधा के अनुसार अपना योगदान कर सके और लाभ उठा सके।

मिशन की कार्यप्रणाली को निम्नांकित बिन्दुओं में पिरोया जा सकता है :-

1. शिक्षकों के अन्दर उठने वाले हर मौलिक और उपयोगी विचार को मंच प्रदान करना ताकि सामूहिक संवाद से उस विचार को परिष्कृत होने का और मौलिकता को प्रोत्साहित होने का अवसर मिले।

2. नेकनीयती से किये जा रहे किसी के छोटे से छोटे प्रयास को भी मंच मिलना ताकि वह स्वयं को नवसमाज का निर्माता अनुभव करे और अधिकाधिक योगदान करने को प्रोत्साहित हो। (सेतुनिर्माण में गिलहरी का प्रयास भी राम की नज़र में स्तुत्य था)

3. एक जैसे विचारों/उद्देश्यों वाले शिक्षकों को जनपद/प्रदेश स्तर पर समूह में आबद्ध करके उन्हें 'समूह शक्ति' का अहसास कराना और सामूहिक प्रयासों/योजनाओं की पृष्ठभूमि तैयार करना।

4. समाज में शिक्षकों की छवि को गरिमा प्रदान करके एक ऐसा मानदंड और आदर्श विकसित करना जिसके आलोक में नकारात्मक लोग भी इस धारा को मुख्यधारा मानकर इस ओर आने को प्रवृत्त होने लगें।

5. 'एक बीज से अनेक अनेक बीज' की तर्ज पर विचारों/कार्यों का गुणात्मक प्रसार।

6. हमारे दायरे से बाहर की नकारात्मक चर्चाओं से परहेज करके सिर्फ सकारात्मकता की बात पर ध्यान एकाग्र करना क्योंकि कीचड़ को कीचड़ से नहीं, स्वच्छ जल से ही धोना होता है।

मिशन शिक्षण संवाद कुछ शुरूआती लोगों का सपना था। सपना था शिक्षा, शिक्षक, शिक्षार्थी को एक नया आकाश देने का, उनकी शुचितापूर्ण जड़ों को गहराई देने का।

आज वह मुट्ठी भर लोगों का सपना हजारों लोगों का कारवां बन चुका है, लाखों-करोड़ों की उम्मीद बन चुका है।

मिशन शिक्षण संवाद के आने से तस्वीर में बहुत बड़ा बदलाव भी हुआ है। आज समाज में बेसिक शिक्षा की तस्वीर बदलने वाले, अपने ज़ज्बे, निजी संसाधनों और नवाचारों से शिक्षा की अलख जगाने वाले शिक्षक समाज की मुख्यधारा में यत्र-तत्र नज़र आने लगे हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में लोग सर्वसाधन-संपन्न निजी विद्यालयों की बजाय सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ाने लगे हैं, वह भी मात्र एक-दो शिक्षकों के ज़ज्बे की बदौलत।

हालांकि तस्वीर का यह बदलाव सपने के सापेक्ष एक बहुत छोटी-सी शुरुआत-भर है। चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। कभी-कभी मिशन के विशाल समुद्र में लहरों के ज्वार-भाटे भी आते रहते हैं। किसी बहुत बड़े साधन-सम्पन्न वटवृक्ष की छाँव भी मिशन को प्राप्त नहीं है।

लेकिन यह उड़ान है हौंसले की
शुद्ध भावनाओं से भरे हौंसले की
जो काम करता है, सिर्फ काम करता है
फल को भी ध्यान में रखता है,
आशा-निराशा के हिंडोले में भी झूलता है
लेकिन फिर भी काम करता रहता है
मैदान में डटा रहता है

कारवां के साथी बदल जाते हैं, छोड़ देते हैं, छूट जाते हैं,
कई उम्मीदें नाकामियों में दफ़न हो जाती हैं,
कई सपने टूट जाते हैं,
लेकिन जीवन की इन कटु सच्चाइयों के बावजूद
निरंतर प्रयास उस हौंसले का नाम है, जिसने 'हार' शब्द सुना ही नहीं

हम रहें, न रहें,
लक्ष्य मिले, न मिले
नाम यही रहे, या बदल जाये
लेकिन जिस भावना से इस मिशन की शुरुआत हुई है
वह भावना कभी मरेगी नहीं, मर सकती नहीं
क्योंकि
शुद्ध भावना सनातन होती है, शाश्वत होती है।

लेखक
प्रशांत अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
जिला बरेली (उ.प्र.)।

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