माँ

कितने रंग निराले देखे
रुप बदलते माँ के देखे,

जब  गुस्से में  हमें  डाँटती
खट्टी  चटनी  जैसी  लगती
जब मुस्कराकर वह निहारती
खोये  की  'बर्फी'  सी  लगती

जब गुस्सा अपना दिखलाती
दुर्गा और 'चण्डी'  सी लगती
गोद  में लेकर जब सहलाती
'ममता'  की मूरत वह लगती

दिन-दिन  मेरा  रुप  देखकर
सपनों में रची-बसी​ वह लगती
आशा  जब  उसकी हैं  टूटती
बिखरे तिनके सी वह  लगती

कितने रंग निराले देखे
रूप बदलते माँ के देखे...!!

रचयिता
श्रीमती ममता जयंत,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चौड़ा सहादतपुर, 
विकास खण्ड-बिसरख, 
जनपद-गौतमबुद्धनगर।

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