माँ

हाथ थामकर  संसार मे लाये ,
जीवन की नई दुनिया दिखाये ।
जो सहे हर दर्द को हँसकर के ,
फिर भी प्यार से गले  लगाये ।

जिसके आँखों से नीर और ,
आँचल से  बस दूध छलके।
जिसको  छूकर  मिट्टी भी ,
खुद को कुदंन कर  दे ।

छांव में जिसकी ममता इतनी,
सिन्धु  भी  न गहरी  जितनी ।
हर भंवर से हमें दूर  निकले  ,
बड़े लाड- प्यार से हमे पाले ।

हर मुश्किल की ढाल बने जो,
पन्ना सी खुद  धाय बने जो।
खुद भूखी रह पेट भरे  जो ,
रक्त -रक्त में न भेद करे वो।

जीवन की हर मर्यादा रखती ,
अच्छे -बुरे को वो है परखती।
जाने  कितने दर्द वो सहती,
मुँह से उफ्फ तक न करती ।

सीने से  जो लाल  लगाये ,
मुर्दा भी  जीवित हो जाये ।
रफ्ता-रफ्ता सत्य ज्ञान कराये ,
हमें न कभी दिल से दूर भगाये।

" माँ " होती  ममता का  सागर ,
नतमस्तक हो चरणों हम शीश नवायें ।

रचयिता
वन्दना यादव " गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक ,
डोभी , जौनपुर।

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