न गन्द छूटे अब कहीं

गर उठा सकते हो वीर
देश की रक्षा का भार
है यदि लहू में शामिल
आर्यों सा गर उबाल

तो मुहाफ़िज़े हिन्द मेरे
ए मेरे वतन के वीर
ना चलानी तोप है,ना है
उठानी तरकश ओ तीर

देश की रक्षा के खातिर
इतना तो तुम कर ही लेना
जाना नही है जंग लड़ने
होगा नहीं तुम्हें जान देना

एक टुकड़ा कागज़ बहुत है
देश की पहचान को
गर कहीं वह उड़ रहा है
खोज में कूड़ेदान को

वो उठाकर फेंक देना
उसकी जैसी हो जगह
देखना फिर कैसे होगी
साफ़ सुथरी सी सुबह

एक कोना ही बहुत है
देश की पहचान को
गर कहीं वह झेलता है
पीक की हर धार को

छोड़ देना आदत बुरी ये
जो कहीं तुमने पाल ली
है नहीं मुश्किल ये प्यारे
जो सच में तुमने ठान ली

एक निरा बालक बहुत है
जिसने तोड़ा दम कहीं
अस्पताल लाखों खुले हों
जो न पहुँचे वो वहीं

एक नन्हीं सी अगर जो
जान भी मुश्किल में है
देश है वो देश फिर
छेद जिसके दिल में है

देश हित के लिये
बात इतनी मान लो
है दीवाली, शुभ है अवसर
आओ मित्रों ठान लो

देश का हर एक कोना
मेरी जिम्मेदारी है अब
चाहें जैसे भी हो मुमकिन
साफ होगा देश तब

और यही विनती है मेरी
"देव"प्रण बस है यही
साफ हो हर गली कूंचा
न गन्द छूटे अब कहीं
न गन्द छूटे अब कहीं
न गन्द छूटे अब कहीं

रचयिता
यशोदेव रॉय,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय नाउरदेउर,
विकास खण्ड-कौड़ीराम, 
जनपद-गोरखपुर।

Comments

Total Pageviews