जनता में हाहाकार है

भ्रष्ट होता है आचार जब अपना,
तब वह ही तो भ्रष्टाचार है।
लोग फिर भी मूकदर्शक बने हैं,
ये उनका कैसा व्यवहार है?
व्यक्तिगत स्वार्थ में लीन हैं,
भोली जनता का क्यों दुत्कार है?
इनसे ही तो पहुँचे शिखर पर,
फिर भी करते अत्याचार हैं।
वापस भी होना पड़ता है,
इसका न थोडा भी परवाह है।
अपनी सुविधा में न कोई कमी,
इधर जनता में मचा हाहाकार है।
बन्द करें अब मूर्ख बनाना हमें,
ये हम सभी जन का प्रतिकार है।
लोकतन्त्र में न करें मनमानी,
जिस पर जनता का अधिकार है।
याद कर लें गाँधी,शास्त्री को भी,
जिनका दिलों में सबके प्यार है।
सारा देश आपके हाथों में है,
मानें कि यह हमारा परिवार है।
तब कदम चूमेगी पूरी दुनिया,
निगाहें लगाया पूरा ये संसार है।।
         
रचयिता
रवीन्द्र शर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बसवार,
विकास क्षेत्र-परतावल,
जनपद-महराजगंज,उ०प्र०।

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