बजने दो
पैरों में घुँघरू बजने दो,
भावों की महफ़िल सजने दो।
मन के पंक्षी को उड़ने दो,
इतिहास नया अब रचने दो।
धुन संगीत की बजने दो,
मन मंदिर में बसने दो।
ता ता थैया अब होने दो,
मस्त मगन मन होने दो।
आलस्य, क्रोध को सोने दो,
नीरसता को रोने दो।
भय, चिन्ता सब खोने दो,
खुद से प्रेम अब होने दो।
कमर जरा लचकाने दो,
पायल को छनकाने दो।
हाथों को थिरकाने दो,
कष्टों को बिसराने दो।
नयनों को इशारे करने दो,
बातें खुद से ही करने दो।
प्रेम सुधा अब पीने दो,
बिंदास मुझे अब जीने दो।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
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