जो हमको सीख सिखाते हैं

 सूरज दादा सीख सिखाते,

 नित दिन ही वो सुबह आते।

आलस को  न  मन में लाते, 

नित जग को रोशन कर जाते हैं।


पेड़ सदा ही सीख सिखाते, 

जब वो फलों से लद जाते।

झुक-झुक कर शीश  झुका,

हम सब की भूख मिटाते हैं।


दीपक जलता सीख ये देता,

भेद भाव मन में न लाओ।

चाहें निर्धन हो धनवान,

 एक रौशनी करते जाओ।


सीख सदा ये नदियाँ देतीं, 

कल कल कर के जो बहती।

सबकी ही प्यास बुझाती, 

प्यार सदा वो बरसाती है।


फूल सदा ही सीख सिखाते, 

काँटों में भी वो मुस्काते रहना।

संघर्षों  से तुम  कभी न डरना,

कठिन डगर पर बढ़ते रहना।


चलते रहते हैं जो प्रतिदिन, 

हम सबको सीख सिखाते हैं।

दीप जो नित आगे बढ़ते हैं,

 वो मंजिल को सदा ही पाते हैं।


रचनाकार

दीपमाला शाक्य दीप,

शिक्षामित्र,
प्राथमिक विद्यालय कल्यानपुर,
विकास खण्ड-छिबरामऊ,
जनपद-कन्नौज।



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