आदर्श पुरुष :मदन मोहन मालवीय

अपने युग के आदर्श पुरुष थे मालवीय,

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रणेता मालवीय।

प्रथम व अंतिम व्यक्ति नवाजे गए "महामना" पद से,

सम्मानजनक उपाधि पाए थे मालवीय।।


25 दिसंबर 1861 प्रयागराज को जन्म से किया धन्य,

पिता पंडित ब्रजनाथ व माँ मूना देवी भी हुए धन्य।

संस्कृत भाषा में प्रारंभिक शिक्षा इन्होंने पाई,

कविताएँ लिखीं मकरंद नाम से, कवि थे मूर्धन्य।।


पत्रकार, वकील, समाज सुधारक रहे मालवीय जी,

मातृभाषा, भारत माता की सेवा में समर्पित मालवीय।

विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा की परिकल्पना की,

ब्रह्मचर्य, देशभक्ति, आत्म त्याग में अद्वितीय मालवीय।।


अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी थे मालवीय,

कर्म को ही जीवन का आधार मानें मालवीय।

भारतीय संस्कृति के प्रतीक ऋषियों के प्राणवान स्मारक,

प्रातः, संध्योपासना, श्रीमद्भागवत अभिन्न अंग माने मालवीय।।


स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका से नहीं इनकार,

सनातन धर्म, हिंदू संस्कृति की रक्षा में तत्पर।

देश की विभिन्न विद्याओं, कलाओं की शिक्षा में प्राथमिकता,

विश्वनाथ मंदिर की स्थापत्य कला में आदर्श उनका था उपकार।।


2011 में उनकी स्मृति में डाक टिकट हुआ जारी,

2016 में महामना एक्सप्रेस की थी तैयारी।

24 दिसंबर 2014 को भारत रत्न सम्मान पाया,

12 नवंबर 1946 आई थी जग से विदाई की बारी।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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