अटल बिहारी बाजपेई जी

हिन्द रगों में बहता जिनके,

परिचय जिनका हिंदुस्तान,

लाल मिले भारत को ऐसे,

अटल देश की थे पहचान।


शत्रु मानते जिनका लोहा,

दिनकर का आलोक थे,

राष्ट्र व्याप्त जिनकी साँसों में,

मलय का सुरभित झोंक थे।


संकल्पित श्रीराम के जैसे,

प्रतिभा जीवन में घुली हुई,

कान्हा सी रणनीति कुशलता,

मिश्री नेह की मिली हुई।


हृदय समर्पित तन था अर्पित, 

चेतन में था देश बसा,

शासन के थे सफल चितेरे,

काव्य छंद का चढ़ा नशा।


वाणी ऐसी धारदार की, 

नतमस्तक अरि हो जाता था,

संयुक्त राष्ट्र के उद्बोधन को, 

कभी विश्व भूल न पाता था।


व्याख्यानों के जादूगर वो,

कह देते बात सरलता से,

अणु परीक्षण में शक्ति दिखाई, 

जग को बड़ी सहजता से।


चरण वंदना भारत माँ की, 

प्रतिदिन का संकल्प है,

अटल सत्य के अटल विचारक,

उनका नहीं कोई विकल्प है।


आज अवतरण दिवस मनाएँ,

राष्ट्रभक्त को करें नमन,

वीरपुत्र भारतमाता के,

अटल बिहारी बसे जन-जन। 


रचयिता

सीमा मिश्रा,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय काज़ीखेडा,
विकास खण्ड-खजुहा,
जनपद-फतेहपुर।



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