योग से निरोग

आदिकाल की थी जो परम्परा,
आज मानव उस पर आ ठहरा।
ऋषि मुनियों की कही वाणी,
आज ढूँढता उसको ही प्राणी।

प्रकृति के दिये अनुपम खजाने,
आओ सीखें हम, उन्हें पहचानें।
शान्त भाव से करें जो ध्यान योग,
प्राणायाम निकट न आने दे रोग।

प्राणवायु को साध के तो देखो,
अनुपम शक्ति पहचान के तो देखो
रोग व्याधियों का डर ना होगा,
ये शान्ति शक्ति का अनुभव देगा।

शान्त चित्त सदविचारों की खान,
अडिग संघर्ष शक्ति की हैं पहचान
योग ध्यान सफल ये सब कर जाए
उपलब्धि पग-पग में मिलती जाए।

अति उत्कृष्ट हैं ये पुरातन उपाय,
प्रातः योग से निरोगी जीवन पाएँ
शक्तियाँ अर्जित कर कर्मठ हो जाएँ
स्वयं बढ़ें राष्ट्र भी उन्नत कर जाएँ।

रचयिता
जानकी दानू,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय थनगीरा,
संकुल-कुराड़,
विकास खण्ड-थराली,
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।

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