बेटियाँ

सूने दिल में भी दोस्तों त्यौहार बनते हैं।
फूल भी हँसकर गले का हार बनते हैं।
टूटने लगते हैं सारे बोझ से रिश्ते,
बेटियाँ होती है तो परिवार बनते हैं।

महान संत पुरूष को पावन कुटिया देते हैं,
जीवन जीने का ज्ञान देते हैं।
जिस घर में ईश्वर की कृपा होती है,
उसके घर में ईश्वर बेटी देते हैं।

झूले पड़नें पर मौसम सावन हो जाता है।
एक डोर से रिश्तों का बन्धन हो जाता है।
मेंहदी के रंग, पायल कंगन सजते रहते हैं।
बेटी घर पर हो तो आँगन वृंदावन हो जाता है।।
     
मेंहदी रोली और कुमकुम का त्यौहार नहीं होता है।
रक्षाबंधन के चन्दन का प्यार नहीं होता है।
वह सूना-सूना होता है,
जिस घर में बेटी का अवतार नहीं होता है।

रचयिता
हरीओम सिंह,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय पेरई,
विकास खण्ड-नेवादा,
जनपद-कौशाम्बी।

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