मैय्या मोरी

" चंद्र-सी शीतल तेरी गोदी
  बिंदु - सा लेटा हुआ हूँ मैं ।।
  तेरे नाम पर लगा चंद्र बिंदु
  अब समझ में आ गया माँ ।।"

किससे  सुनूँ माँ ,आज फिर वो लोरी
कैसा था चंदा मामा, कैसी थी चकोरी ।
तेरी याद में माँ, आज आँखें भर आईं
पिला दो मुझको माँ,वो नेह की कटोरी ।।

वो धनिए की चटनी, चूल्हे की रोटी
कहती थी इससे स्वस्थ रहती किडनी
बड़े प्यार से करती थी  मेरी चोटी
मुझे फिर से बांधो माँ, ला दूँ वो डोरी ।।

झूला जो बाँहों का तूने हंसकर झुलाया
खाया खुद ने माँ, मुझे पहले खिलाया ।
माँ तेरा आंचल है बहुत ही चमत्कारी
माँ, तेरे बिना यह दुनिया लगे मुझे कोरी ।।

तुम बस्ता उठाए चली स्कूल तक मेरे साथ
मत खिलौने की चिंता कर खूब पढ़ मेरे लाल ।
पूजे तूने देवी-देवता सलामत रहें मेरे भूपेंद्र-गोपाल
आज भी हर अहसास में जिंदा है मेरी मैय्या मोरी ।।

रचयिता
गोपाल कौशल
नागदा जिला धार मध्यप्रदेश
99814-67300
रोज एक - नई कविता 
Email ID : gopalkaushal917@gmail.com
©स्वरचित ®

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