नन्हीं कली

नन्हीं कली मैं खिल ना पायी,
माँ, आकर मैं तुझसे मिल ना पायी,
मैं भी उतनी ही भावुक थी,
मैं भी उतनी ही नाज़ुक थी,

फिर क्यों ना मुझको अपनाया,
क्यों नष्ट की तूने मेरी काया,
मैं भी थी तेरी ही छाया,
मुझमें थी तेरी ही आभा,

मैं तेरी पहचान बन जाती,
मैं तेरा अभिमान बन जाती ।।
तेरे आँचल के स्पर्श से,
मैं तेरा सम्मान बन जाती,

तेरे बेटों से आगे बढ़कर,
तेरे आँगन में फूल खिलाती ।।
पर आँखें मैं खोल ना पाई ,
अपनी व्यथा तुझे बोल ना पाई,

तेरे वात्सल्य के स्पर्श को ,
अपने जीवन में घोल न पायी।।
नन्हीं कली मैं खिल ना पायी,
माँ, आकर मैं तुझसे मिल ना पायी।।

रचयिता
पूजा सचान,
(स०अ०),
प्रा०वि०गुमटी नगला उ०द०,
विकास खण्ड- बढ़पुर,
जनपद-फर्रुखाबाद।

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