वहशी दरिन्दा

दिन - ब - दिन अपराध बढ़ता जा रहा है ,
आदमी ही आदमी को खा रहा है ।
रक्षक ही भक्षक बनकर रौंदता है जिस्म को ,
नारी पे संकट का बादल हर घड़ी मंडरा रहा है ।
आदमी ही आदमी को खा रहा है ॥

हर गली में घूमता भूखा हवस का भेडिया ,
है पकड़ से दूर उसको कौन डाले बेड़ियाँ ।
भेड़िया भूखा हवस का जिस्म नोचे खा रहा है,
दिन - ब - दिन अपराध बढ़ता जा रहा है ।
आदमी ही आदमी को खा रहा है ॥

दिल्ली, बदायूँ की हो घटना या शहर हो लखनऊ ,
गाँवों लुटती है निशदिन बेटियों की आबरू ।
घर से बाहर भी निकलना है काम मुश्किल बड़ा ,
राहों में काँटे बिछे हैं ऊपर से कीचड़ पड़ा ।
न जाने कब किधर से कोई दरिंदा आ रहा है ,
दिन - ब -दिन अपराध बढ़ता जा रहा है ।
आदमी ही आदमी को खा रहा है ॥

दिन - ब -दिन आवाज़ उठती ,बन्द करो ये अत्याचार ।
रुकने का न नाम लेता ,बढ़ रहा है बलात्कार ।
नेता हों या कर्मचारी या हों चाहे थानेदार ,
हर कोई अब है शिकारी ,नारियों का करता शिकार ।
जुर्म की इस दुनिया में
हर कोई ज़हर पिला रहा है
नारी पे संकट का बादल
हर घड़ी मंडरा रहा है
आदमी ही आदमी को खा रहा है

अपने ही परिवार से ये डरती है हरदम सदा,
न जाने किस दोष पर दे दें ये मुझको सजा ।
दहेज का लोभी इन्हे घर में जिंदा जला रहा है ,
नारी पे संकट का बादल हर घड़ी मंडरा रहा है ।
आदमी ही आदमी को  खा रहा है ।

मर गई वो चीख करके हर कोई खामोश है
सबकी नज़रें कह रही हैं इसमे किसका दोष है
जेल में बहशी दरिन्दा खड़े खड़े मुसकुरा रहा है
दिन - ब -दिन अपराध बढ़ता जा रहा है
आदमी ही आदमी को खा रहा है ।

नारियों से कहते "आनन्द " मन में तनिक विचार करें
सम्मान से जीना है तो पहनावे में सुधार करें
तोड़ दें ये बेड़ियाँ, उतार दें सारी चूड़ियाँ
न रहें अबला कभी संघर्ष करना सीख लें
सीखले वो हर हुनर जो हुनर ही हथियार हो
अपनी रक्षा के लिये हर समय तय्यार हो
काम ये वो ही करें जो सबके मन को भा रहा है
दिन ब दिन अपराध बढ़ता जा रहा है
आदमी ही आदमी को खा रहा है ।

ये भाईयों तुम भी ज़रा सुन लो खोलकर अपना कान ,
बहुत हो चुका बन्द करो अब न हो नारी का अपमान ।
काम येसा न करो जो खुद ही को लजा रहा है ।
दिन - ब -दिन अपराध बढ़ता जा रहा है ,
आदमी ही आदमी को खा रहा है ।

रचयिता  
गया प्रसाद आनन्द,
(आनन्द गोण्डवी ),
स०अ०( चित्रकार व कवि ),
बुद्ध उ०मा०वि० करनीपुर वजीरगंज,
जनपद -गोण्डा।
स्वर दूत -9910960170
              9838744002

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