कुछ बनो तुम

धरती  माँ के फूल  बनो  तुम ,
मत पैरों  की  धूल  बनो  तुम ।

कर्मवीर बन इतिहास बदल दो ,
ना  कंटक  ना  शूल  बनो तुम ।

गर्वित हो मस्तक  जननी  की ,
कूल  के  ऐसे मूल  बनो  तुम ।

प्रेम ,दया, करुण बसी हो  दिल मे  ,
मृदुभाषी समर्पित वसूल बनो तुम ।

धर्म संस्कृति का रक्षक बन अब ,
हर दिल दुआ  कबूल  बनो तुम ।

रचयिता
वन्दना यादव " गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक ,
डोभी , जौनपुर।

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