जीवन है जल

निर्मल पावन अविराम धवल,
निश्छल अविरल जीवन है जल।।

प्रकृति की अनमोल धरोहर
जीवन जिस पर ही निर्भर,
स्फूर्ति का हैं त्वरित आधार,
रंगहीन और  निराकार,
अमृत कहीं अब बना गरल।
निश्छल अविरल जीवन हैं जल।

ऊँचे शिखरों से नीचे उतर,
वसुधा के आँचल में पलकर,
वन, उपवन, गिरि, गह्वर,
बस बढ़ता रहता है जीवन भर।
कोमल चंचल मन का विह्वल।
निश्छल अविरल जीवन हैं जल।।

बिन जल मीन कहाँ जीवन,
बिन नीर हैं सूखे वन उपवन,
खग मृग वृन्द निहार रहे,
कब बरसेगा सावन छन छन
पथ तेरा सरल कहीं हैं विरल
निश्छल अविरल जीवन है जल।।

 जब प्रकाश की किरणें छायें,
ओस की बूँदें झिलमिलाएँ,
 हृदयों में उल्लास, उमंगे,
  नई प्रेरणा भरती जाए,
बनकर मोती धवल उज्ज्वल
निश्छल अविरल जीवन हैं जल।।

आज जल बना दूषित पानी,
स्वार्थ निहित मानव की कहानी,
निर्झर, सरिता, तड़ागों में बस,
रह जायगी पानी की निशानी,
संरक्षण का करें संकल्प अटल
निश्छल अविरल जीवन हैं जल।।

निर्मल पावन अविराम धवल,
निश्छल अविरल जीवन है जल।।
     
रचयिता
गीता गुप्ता "मन"
प्राथमिक विद्यालय मढ़िया फकीरन,
विकास क्षेत्र - बावन,
जनपद - हरदोई।

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