ये है चाह मेरी

ये है चाह मेरी
मैं मित्र तुम्हारा बन जाऊँ
मैं जो पढ़ाऊँ वो पढ़कर
उन्नति की सीढ़ियाँ तुम चढ़ जाओ
श्रेष्ट मानव तुम बनो
ऐसे गुण मैं तुम्हें दे पाऊँ।
              ये है चाह मेरी
मैं रहूँ तुम्हारे संग में
तुम्हारी वाणी की मधुरता में
तुम्हारे हृदय की उमंग में
तुम्हारे आज में कल में
जीवन की कठिनाइयों के हर पल में
          ये है चाह मेरी
सीमाओं को त्याग कर उन्मुक्त तुम बन जाओ,
बसंत से हर्षोल्लास, सरस्वती की साधना पाओ,
संकीर्ण मन संकीर्ण भाव से दूर होकर
भारतीय संस्कृति का परचम तुम लहराओ,
ये है चाह मेरी......

रचयिता
मो0 आलम खान,
9696465144
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बसन्तपुर,
विकास खण्ड-परसपुर,
जनपद-गोण्डा।

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