मेरा विद्यालय - एक उपवन

मेरा विद्यालय  एक उपवन   
जिसमें है सब अपनापन,
बच्चों कि हँसी खिल- खिलाए
मानो हर रोज बसंत आए।

इस उपवन के हैं हम माली
रोपें संस्कारों की छवि निराली,
यहाँ हैं प्रतिभाएँ अनोखी
जितनी खोजो, उतनी पा लीं।

प्रतिदिन यहाँ  खिलती कलियाँ
कक्षाओं में बसती खुशियाँ,
खेल- खेल में पढ़ते बच्चे
नए-नए नवाचार करते बच्चे।

इन बच्चों के कोमल हृदय में
आओ फिर से नवरस भर दें,
इस उपवन के हर पुष्प को
मिलकर हम सुसज्जित कर दें।

गौर करें बातों पर बच्चों की
तो फिर हम ये पाते हैं,
कि इस उपवन का हर पुष्प
स्वयं आलोकित हो जाते हैं।

रचयिता
नम्रता वर्मा,
सहायक अध्यापिका,
प्रा0 वि0 उनासी,
विकास खण्ड- फतेहगंज (प०),
जनपद-बरेली ।

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