हे त्रिलोकी


हे त्रिलोकी ! चित्त में मेरे,
तू सदैव ही वास कर,
चक्षुओं की दिव्य दृष्टि से,
हृदय को मेरे निष्पाप कर,

कलुषता सम्पूर्ण मिट जाए,
और खुद में मैं तुझको पाऊँ,
तुझसे हो मेरा साक्षात्कार ,
तेरे आश्रय मैं आई हूँ ।

अश्रुपूर्ण लोचन लेकर मैं,
विनती तुझसे हूँ करती ,
सत्य से मेरे हृदय को ,
अलंकृत कर हे त्रिमूर्ति ।

शिष्टता के पंख लगाकर,
विनम्रता के अम्बर में,
अनंत तक मैं उड़ती जाऊँ ।
नष्ट कर मेरे हृदय का द्वंद ,

स्वयं से मेरा एकाकार कर दे,
ध्येय में मुझे एकाग्र कर,
यत्न को मेरे नवीन कर दे,
लक्ष्य प्राप्ति का ऐसा उत्ताप ,

हो रक्त में मेरे हे त्रिशक्ति,
शक्ति का मुझमें सागर भर दे।

रचयिता
पूजा सचान,
(स०अ०),
प्रा०वि०गुमटी नगला उ०द०,
विकास खण्ड- बढ़पुर,
जनपद-फर्रुखाबाद।

Comments

Total Pageviews