प्राथमिक शिक्षा का अंग्रेजीकरण


सु-सुनना
बो-बोलना
प-पढ़ना
लि-लिखना

                 हम सबने यह सिद्धांत अधिगम के संदर्भ में कई बार पढ़ा और समझा होगा। सरकारी विद्यालयों के परिदृश्य में यदि हम इन सिद्धांतों का विश्लेषण करें तो हमने कई बार इसे प्रयोग में लाने का प्रयत्न भी किया होगा और कुछ बेहतर परिणाम भी प्राप्त किये होंगे ।
                लेकिन प्रश्न यह उठता है कि प्राथमिक विद्यालयों को इंग्लिश मीडियम में परिवर्तित करने के बाद भी क्या यह नियम उतना ही प्रासंगिक होगा जितना अभी है .....आज सोचने की आवश्यकता है कि हम प्राथमिक शिक्षा में किन उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहते हैं और कितना अभी प्राप्त एवं अप्राप्त है ? जिन बच्चों को हम उनकी स्थानीय भाषा (जो भी हो जैसे भोजपुरी ही )के साथ जोड़ते हुए उनकी मातृभाषा (हिंदी) से पूर्ण रूप से जोड़ पाने में अक्षम सिद्ध हो रहे वहाँ हम उनको द्वितीयक भाषा अंग्रेजी से जोड़ने में कितना सक्षम होंगे ?
               
शिक्षा के बाज़ारीकरण ने शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को परिवर्तित कर दिया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि किसी भी बच्चे के लिए परिवेशीय भाषा ही उपयुक्त होती है। अंग्रेजी को एक विषय के रूप में विशेष ध्यान देना ठीक है पर उसी को शिक्षण का माध्यम बनाया जाना उचित नही प्रतीत हो रहा। हम बच्चों को विभिन्न विषयों का ज्ञान देना चाहते है अथवा उस ज्ञान को अंग्रेजी के माध्यम से बोझिल बना देना चाहते हैं, जबकि हम रोज सुनते है कि शिक्षा को बालकेन्द्रित होना चाहिए तब क्या हमें बच्चे के परिवेश और पारिवारिक पृष्ठभूमि का ध्यान नही रखना चाहिए ??

                यहाँ पुनः ध्यानाकर्षण चाहूंगी कि एक बच्चे के लिए सबसे सहज और सरल उसकी मातृभाषा होती है क्या जितनी सहजता से वह अंगुली को स्वीकार करेगा या समझेगा उतनी ही सहजता उसको फिंगर कहने में आएगी ? एक तरफ तो हम कहते है कि बच्चों पर बस्ते का बोझ ना लादा जाए शिक्षा को सहज और सरल बनाया जाए लेकिन जो हम कह रहे वह कितना ग्राह्य कर रहे ? बच्चों की पढ़ाई में रुचि तब पैदा होती है जब उन्हें पढ़ी और पढ़ाई हुई चीजें अच्छी तरह से समझ में आती है। जब पढ़ाई समझ में ही नहीं आती है तब पढ़ने का मन भी नहीं करता है तथा बच्चे पढ़ाई से दूर भागने लगते हैं। परिवेशीय भाषा मे दिया गया ज्ञान छात्र निश्चित ही जल्दी आत्मसात करेगा जबकि अंग्रेजी भाषा मे दिए जाने वाले ज्ञान को समझने में उसे दोहरी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि पहले तो उसे अंग्रेजी के अर्थ को समझने में परिश्रम करना पड़ेगा फिर दिए जाने वाले ज्ञान को ।
                अंत मे एक विचार जो इस परिदृश्य में बार बार मन में आ रहा कि ऐसी क्या आवश्यकता आ गयी कि हिंदी मीडियम के स्कूलों को इंग्लिश मीडियम में परिवर्तित करना आवश्यक प्रतीत होने लगा ? क्या उससे स्कूलों की महत्ता बढ़ जाएंगी ? हिंदी मीडियम के माध्यम से ऐसा क्या हम अपने छात्रों को देने में असफल हो रहे है, जो हम इंग्लिश मीडियम में परिवर्तित होते ही दे देंगे ???????
                 शिक्षा में नवाचार की भाँति ही शिक्षण सिद्धान्तों में भी अभिनव प्रयोग करने में कोई बुराई नही है बल्कि यह निश्चित ही समय की माँग भी है । अंग्रेजी माध्यम से शिक्षण प्रदान करने के पीछे सामाजिक अंधानुकरण का दबाव एक बड़ा कारण प्रतीत हो रहा है और हमें स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं की सरकारी प्राथमिक विद्यालय एक प्रयोगशाला बनते जा रहे हैं यह भी ठीक है कि नित नए प्रयोगों के द्वारा उनमें सुधार लाने का प्रयत्न किया जा रहा परंतु प्रयोगात्मक प्रक्रिया को सम्पन्न करने से पूर्व हमें उसके सैद्धांतिक पक्ष की जानकारी आवश्यक होती है । ठीक है यदि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि  माध्यम को बदलने की आवश्यकता है तो इंग्लिश मीडियम में परिवर्तित भी कीजिए लेकिन पहले देखिए कि उसकी वाक़ई कहाँ और कितनी आवश्यकता है ?????

लेखिका
प्रज्ञा राय,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मैनपुर कोट,
विकास खण्ड-कसया,
जनपद-कुशीनगर।

Comments

  1. Bilkul sahi baat, ek taraf jaha hindi diwas manane ka dhong kiya jata h, wahi dusri taraf english education ko badhawa diya ja rha hai. Wah re hamari govt. ki mansikta..... Taras aata h hame apne vivek par ki hamne jin par bharosa kiya wo dogle aur dhokhebaaz nikle.....

    ReplyDelete

Post a Comment

Total Pageviews