हिंदी दिवस
आज हम सब मिलकर,
हिंदी दिवस मना रहे हैं।
शादी के बैंकट हॉल की तरह,
हिंदी को सजा रहे हैं।
राष्ट्रभाषा का त्योहार है,
देखो ना हम सब मिलकर,
हिंदी को पकवानों की तरह परोस रहे हैं।
पूरे साल हम अंग्रेजी की तरफ भागते हैं,
सम्मान से उसे अपनाते हैं।
हिंदी जो कहने को राष्ट्रभाषा है,
उसे एक दिन ही याद करते हैं।
विभिन्न आयोजन कर, भव्य प्रदर्शन करते हैं,
फिर साल में आने वाले त्योहारों की तरह भूल जाते हैं।
1947 में देश स्वतंत्र हुआ,
हिंद में हिंदी का उद्घोष हुआ।
पर क्या हम हिंदी को मान दे पाए हैं,
अंग्रेजों की छोड़ी, अंग्रेजी को भूल पाए हैं।
घर के बेटों की तरह, अंग्रेजी घरों में रहती है,
हिंदी घर से विदा की गई बेटी की तरह,
त्योहारों में घर आती है।
हाँ यह हिंदी का त्योहार,
हम आज धूमधाम से मना रहे हैं,
हिंदी नाम के पकवानों की थाल, सब जगह सजा रहे हैं।
इस पराएपन पर हिंदी रो रही है वापस ला दो सम्मान मेरा
देशवासियों से कह रही है।
मुझे राष्ट्रभाषा का सिर्फ नाम ना दो,
मेरी खोई पहचान को मुझे वापस ला दो।
रचयिता
दीपा कर्नाटक,
प्रभारी प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय मुक्तेश्वर-2,
विकास खण्ड-रामगढ़,
जनपद-नैनीताल,
उत्तराखण्ड।
Comments
Post a Comment