सिसक रही है हिन्दी

 श्रंगार अधूरा भारत माँ का, 

खिसक रही है बिन्दी।

पड़ी एक कोने में देखो,

सिसक रही लिपि हिन्दी।


राष्ट्रभाषा बन न पाई,

रही राज्य तक सीमित।

कोस-कोस पर बदली वाणी,

मैं-मैं तू-तू करते प्राणी।


मन में लेकर दर्द असीमित,

सिसक रही लिपि हिन्दी।

भारत माता कहते तुझको,

तेरे लाखों बेटी-बेटा।


बिखर रहा है तेरा कुनबा,

नहीं किसी ने इसे समेटा।

आँखों में ले नदिया-सागर,

सिसक रही लिपि हिन्दी।


जाति-धर्म की लड़ीं लड़ाईं, 

होते क्षेत्रवाद पर दंगे।

भूल सभ्यता देवभूमि की,

बनकर दानव काम करें बेढंगे।


अंग्रेजी का पकड़ा पल्ला,

भूल गये माँ भाषा।

मना दिवस अब हिन्दी वाला,

देते झूठा आप दिलासा।


पुण्यभूमि में शापित होकर,

सिसक रही लिपि हिन्दी।

देख उपेक्षा यहाँ-वहाँ पर,

सिसक रही लिपि हिन्दी।


चयिता

राजबाला धैर्य,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिरिया नारायणपुर,
विकास खण्ड-क्यारा, 
जनपद-बरेली।

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